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तुम साथ चल रही हो। (कविता)। भाग - 2

 

तुम साथ चल रही हो। (कविता)। भाग - 1

 

तुम साथ चल रही हो। (कविता)

 तुम साथ चल रही हो । (कविता) नज्मों के संग भी तुम गज़लों के संग भी तुम यादों के संग मेरी तुम साथ चल रही हो  मेरे दिल में, जिस्मों, जां में शामिल हो इस तरह तुम बन कर लहू रगों में दिन- रात बह रही हो नज़्मों के संग भी तुम गजलों के संग भी तुम सांसों के संग मेरी तुम साथ चल रही हो ।

ये देश है हमारा । (कविता) भाग - 1

 

ये देश है हमारा । (कविता) भाग- 2

 

ये देश है हमारा। (कविता)

ये देश है हमारा।  (कविता) जब तक लहू रगों में और सांस चल रही है मेरे वतन की खुशबू सांसों में बस रही है हम बागबान वतन के कांटे हमारा बिस्तर  हमने लहू से सींचा तारीख़ कह रही है तारीख़ के वरक पर स्याही नहीं लहू है रोया है आसमां भी धरती ये कह रही है कितनों ने लाल खोए कितनों ने सहारे तब जा के पाई सरहद तब मिल सका किनारा जन्नत है ये हमारी हमने इसे निखारा ज़ख्मों के फूल दे कर हमने इसे संवारा  तुम आज फिर से बोलो जय-हिंद का ये नारा ये देश "असद" हमारा  हमें जान से है प्यारा ।  

ये देश है हमारा। (कविता)