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सच बोल रहा हूँ l (कविता)

 सच बोल रहा हूँ l  (कविता) 


गूंगों के दरबार में मुँह खोल रहा हूँ

नफ़रत के बाज़ार में सच बोल रहा हूँ 

इस देश के अखबार जो बोल न सके

लोगों के सामने वही सच बोल रहा हूँ

गाँधी से तुम सीखो या फिर टैगोर से सीखो

नेहरू से तुम सीखो या फिर कलाम से सीखो

मन के तुम्हारे द्वार अब मैं खोल रहा हूँ

मन में तुम्हारे प्यार अब मैं घोल रहा हूँ

नफ़रत के बाज़ार में सच बोल रहा हूँ 

गूंगों के दरबार में मुँह खोल रहा हूँ। 

सच्चाई के रास्ते पर तुम आगे अब बढ़ो

अच्छाई के रास्ते पर मेरे साथ तुम चलो

गीता से तुम सीखो या फिर क़ुरान से सीखो

तुम राम से सीखो या फिर रहमान से सीखो

मन के तुम्हारे द्वार अब मैं खोल रहा हूँ

मन में तुम्हारे प्यार अब मैं घोल रहा हूँ

नफ़रत के बाज़ार में सच बोल रहा हूँ 

गूंगों के दरबार में मुँह खोल रहा हूँ l

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