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मैं भारत हूं। (कविता) , कवि - अब्दुल असद

कविता – "मैं भारत हूँ" कवि – अब्दुल असद कभी-कभी कविता केवल शब्दों का विन्यास नहीं होती, वह एक आत्मा की उद्घोषणा बन जाती है। "मैं भारत हूँ" ऐसी ही एक कविता है — जहाँ कवि स्वयं को राष्ट्र के रूप में अनुभव करता है, और फिर उसकी हर श्वास, हर भाव, हर शब्द… भारत की संपूर्ण चेतना बन जाता है। यह कविता एक रूपक (Metaphor) पर आधारित है — एक विस्तारित रूपक, जिसमें "मैं" कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि हर वह नागरिक है जो देश से प्रेम करता है, देश के लिए जीता है, और उसमें स्वयं को पाता है। यह कविता बताती है कि भारत केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक भावना है — जो हर सैनिक की वर्दी में, हर किसान की मिट्टी में, हर माँ की प्रार्थना में और हर बच्चे के स्वप्न में जीवित है। "मैं भारत हूँ" — यह कहना अपने अस्तित्व को मिटाकर किसी व्यापक पहचान में विलीन होना है। यह कविता हमें याद दिलाती है कि भारत हमारे बाहर नहीं, हमारे भीतर है। हमारी चेतना, हमारी भाषा, हमारे त्याग और हमारे स्वप्न — यही भारत है। यह कविता हर उस व्यक्ति की आवाज़ है, जो स्वयं को भारत से अलग नहीं समझता — क्योंकि वह जानता है, "भारत कोई दूसरा नहीं… मैं ही भारत हूँ।" मैं भारत हूं (कविता) कवि - अब्दुल असद (भाग - 1) मैं संघर्ष की दीपशिखा में साहस का राग सुनाता हूँ, मौन बलिदानों की भाषा में कविता का रंग सजाता हूँ। माटी की रूह में रचता शौर्य का गीत पुराना हूँ, दीपों की चुप लहरों में त्याग का एक फ़साना हूं मैं चिंगारी उस विचार की, जो आत्मा में जलती है, मैं हुंकार उस मौन की, जो इतिहासों में पलती है। मैं थामे हूँ तिरंगे को, हर आंधी से टकराता हूं , मैं हर युग के इतिहासों में, खुद को फिर दोहराता हूं । मैं लहू से लिखी पंक्तियों में, आज़ादी का गीत हूँ, जनमन की वीणा पर बजता, सच्चे प्रेम का मीत हूँ। मैं वह कथा, जो समय की हर साँस में बह जाती है, भारत देश की गोदी में श्रद्धा से संवारी जाती है।

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