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गज़ल

  


न जाने क्यूँ तेरी चाहत का साथी बन नहीं पाया

मोहब्बत की डगर का मैं भी राही बन नहीं पाया

अगर बन कर मेरी मुमताज़ मुझे अपना लिया होता

तो मैं भी प्यार में तेरे शहंशाह बन गया होता

फिर मोहब्बत की इबारत नया इतिहास बन जाता

तेरी चाहत की खातिर में नया एक ताज बन जाता। 

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